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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011
सफलता हमें भी मिली - कमलेष सिंह
जिला - बक्सर
सफलता हमें भी मिली - कमलेष सिंह
बक्सर जिला अन्तर्गत राजपुर प्रखंड के ग्राम पंचायत तियरा के बघेलवा ग्राम के सीमान्त किसान, कमलेष सिं श्री विधि (धान) की सफलता पूर्वक खेती से खासे उत्साहित है। और आज अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। आज वे क्षेत्र के अन्य किसानों के चर्चा में षामिल है। स्व0 फौजदार सिंह के तीन पुत्रों में मंझले कमलेष सिंह ने सपने में भी नहीं सोचा था कि खेती के वजह से मैं आम से खास व्यक्ति बन जाउंगा, तथा हमारे खेत के निरीक्षण के लिये जिला स्तरीय पदाधिकारी एवं वैज्ञानिकगण आएंगे।
महज छठी कक्षा तक पढ़ाई करने वाले कमलेष सिंह पिता की मृत्यु के पष्चात खेती को ही अपना मुख्य कार्य मान पारंपरिक खेती करते थे तथा परिवार का भरण-पोशण करते थे। लेकिन उत्पादन बहुत कम होता था जिससे परिवार का भरण पोशण उचित नहीं हो पाता था। इस वर्श इन्हौने श्री विधि से धान की खेती की है और श्री विधि की खेती ने उनके घर इस वर्श धन वर्शा की है। जब उनसे श्री विधि की सफलता का राज जानने पहुंॅचा तो वे खासे उत्साहित दिखे और तपाक से उन्होने अपने उद्गार को साधारण भाशा में व्यक्त करने लगे। आगे कमलेष जी की बात उन्हीं के षब्द में -
एक दिन हम अपना खेत पर जात रहनी त देखनी कि पेट्रोल पम्प पर किसान लोग के भीड़ जुतल रहे उत्सुकता बस हमहु ओइजा पहुंॅच गइनी। देखनी कि ओइजा मृत्युंजय मिश्र जी जवन हमनी के एसेमेस बानी वाल्टी में धान भेंवले रही आ कुछ बतावत रहीं। हम तवाक से पुछनी कि इ का होतवा त हमके मिसिर जी बतवनी की श्री विधि से धान के खेती के बारें में बतावल जाता। उहांॅके बत्लवनी की श्री विधि में कम बीज (2 कि0ग्रा0) कम खाद कम पानी तथा खर्च भी कम लागी। एह विधि में 8-12 दिन के वीचड़ा लगावेके बा तथा रोपाई 25 बउ ग 25 बउ के समान दुरी पर एक-एक पौधा लगावे के बा। खेत के ओदा-सुखा रखे के बा एहसे पानी भी कम लागी। खेत में घास उगी त ओके कोनोविडर यंत्र चलाके खेते में सड़ावे के बा तथा मिट्टी के भुरभुरी बनावेके बा कम से कम 2-3 बार कोनोविडर चलावे के पड़ी।
जब हम मिसिर जी के बात सुननी त लागल की इहांॅ के बात में जरूर दम बा पैदा बढ़ी। कहनी कि ए मिसिर जी हमरो खेतवा देख ली हमहु श्री विधि से खेती कइल चाहत बानी। मिससिर जी हमरा के बहुत सहयोग कइनी उहांॅ के जइसे बतावनी हम ओइसही करत गइनी। पहिले जहांॅ 4-5 जो पौधा रोपत रहनी जा तबो 20-25 कल्ला निकलत रहें। श्री विधि में 80-85 जो कल्ला एकहीं पौधा से निकल गइल है। आ फसल बहुत अच्छा भइल है। जब मिसिर जी हमरा खेत पर आवत रही त लोगन के भीड़ जुट जात रहे। हमरा सबसे खुषी भइल जब पटना से फोटु खिचे वालन के लेके मिसिर जी आइल रहनी। जब हमरा के खेत में घुसा के हमरा ओर कमरा कइके जब उलोग हमरा से खेती के बारे में पुछे लागल त खुषी से हमार आंॅख भर गइल। हम बहुत गदगद बानी। पहिले एक एकड़ में मुष्किल से 20-22 क्विंटल धान होत रहे असो श्री विधि से कइनी ह 32-34 क्विंटल धान एक एकड़ में भइल बा। आगे साल से अउरू बढि़या से खेती करब उम्मीद का अउर ज्याद धान बढ़ी। एह खेती में सबसे ज्यादा फायदा इ बा कि खाद कम लागत बा खाली धुरके खाद से हो जात बा आ दवाइयों कम लागत बा। एह से हम त लगइबे करब हमार साथी लोग भी कहता किए कमलेष जी अगिला साल सब आदमी मिल के श्री विधि से धान के खेती कइल जाई। अब हमहुंॅ कह सकीना कि हम है सफल किसान।
सफलता की कहानी - कृशक की जुबानी
जिला - बक्सर
सफलता की कहानी - कृशक की जुबानी
पहले ढ़ैंचा, फिर रोपे धान।
वही है आज का सफल किसान।।
बिहार सरकार कृशि विभाग के इस उक्ति को आत्मसात कर दिखाया है, बक्सर जिला अन्तर्गत राजपुर प्रखंड के अकबरपुर पंचायत अन्तर्गत बसही ग्राम के किसान श्री विरेन्द्र कुमार सिंह ने / स्व0 लाल बहादुर सिंह जी के तीन पुत्रों में ज्येश्ठ श्री विरेन्द्र सिंह जी ने हाई स्कूल पास करने के पष्चात ही खेती में विषेश रूची लेने लगे और स्वयम् को खेती के लिये ही समर्पित कर दिया। कृशि विभाग द्वारा संचालित लगभग सभी कार्यक्रमों में रूचि रखते हैं तथा प्रत्यक्षण आदि कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। आज इनके सम्पूर्ण परिवार के पोशण का मुख्य साधन कृशि ही है। यह एक सफल किसान है। क्या है इनकी सफलता का राज आइये इन्हीं से पुछते हैं -
वैसे तो मैं बचपन से ही खेती में रूचि रखता हूंॅ। किन्तु विगत वर्श हमारे गांॅव में किसान पाठषाला का आयोजन कृशि विभाग द्वारा किया गया। जिसमें प्रषिक्षक थे श्री मृत्यूंजय जी। संयोगवष आज वही हमारे पंचायत के विशय वस्तु विषेशज्ञ भी हैं। उन्हौने ही खेती के वैज्ञानिक पहलुओं से प्रथमवार हम किसानों को रूबरू कराया। क्या आने वाली पीढ़ी को प्रदुशण मुक्त और षुद्ध वातावरण मिल सके इसके लिये टिकाऊ खेती महत्व को समझाया। साथ ही मिट्टी की उर्वरता कायम रहे इसके लिये हरी खाद एवं जैविक उत्पाद के खेती में अधिकाधिक प्रयोग के लिये प्रेरित किया। वैज्ञानिक खेती एवं पारंपरिक खेती के अन्तर को सटीक तरीके से समझाया। आधुनिक खेती में ढ़ैंचा का महत्व उसी की एक कड़ी है।
उन्हीं से प्रेरित होकर एक दिन में फोन किया कि सर ढै़ंचा का बीज कहांॅ मिलेगा। उन्हौने अति उत्साहित लहजे में कहा कि इस वर्श कृशि विभाग निःषुल्क ढ़ैंचा बीज मुहैया करा रही है आप प्रखंड मुख्यालय, राजपुर आकर बीज ले जाइये। मृत्यंजय जी के निर्देषन में मैने लगभग 10 (दस) एकड़ क्षेत्र में ढ़ैंचा का बीज लगाया। जिस प्लाॅट में मैने ढ़ैंचा का प्रयोग किया था उसमें उत्पादन काफी अच्छा रहा है।
ढ़ैंचा के प्रयोग में जो मुझे स्पश्ट महत्व समझ आया, वह यह यह है कि जिस खेत में ढ़ैंचा या जैविक उत्पाद का प्रयोग कर खेती किया हूंॅ, उस पौधे पर रोग एवं व्याधियों का प्रभाव भी कम रहा तथा मृदा की जलधारण क्षमता में भी कमी आयी। इस बार उर्वरक के रूप में रासायनिक खादों का प्रयोग पहले की तुलना में आधा किया हूंॅ। हांॅ कृशि विभाग के बही सहयोग से वर्मी कम्पोस्ट यूनिट लगाया हूंॅ जिसका प्रयोग इस वर्श खेती में किया हूंॅ।
अतः हरी खाद के रूप में ढ़ैंचा का प्रयोग हम किसानों के लिये रामबाण है। इसके प्रयोग से सिंचाई जल, रासायनिक उर्वरक, रासायनिक दवाओं पर खर्च से मुक्ति मिल जाती है तथा उत्पादन पहले जहांॅ 40-45 क्विींटल प्रति हेक्टेयर होता था आज धान का उत्पादन 85-95 क्ंिवींटल हो रहा है। अगले वर्श से सभी खेत में ढ़ैंचा का बीज लगाने का मन बना लिया हूंॅ। वाकई ढ़ैंचा हम किसानों के लिए वरदान है। अब मैं भी फक्र से कहता हूंॅ - ‘‘जो पहले बोये ढ़ैंचा फिर लगाये धान वही है सफल किसान।’’
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