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मंगलवार, 10 मई 2011

खेती के लिए महत्वपूर्ण है हरी खाद

खेती के लिए महत्वपूर्ण है हरी खाद.
हरी खाद भूमि में जैविक तत्वों कि मात्रा बढ़ाकर संरचना में सुधार करती है जिससे भूमि की जल धारण क्षमता में  सुधार  होता है।
  •  भूमि की क्षारीय और लवणीय स्थिति में सुधार होता है। 
  • भूमि में पोषक तत्वों जैसे नत्रजन, फास्फोरस, कैल्सियम, पोटेशियम आदि तत्वों की अधिक मात्रा व सुलभता में वृद्धि होने के साथ-साथ मृदा में उपलब्ध सूक्ष्म तत्वों को अधिक सुलभ बनाती है। 
  • खरपतवारों की वृद्धि को रोककर खरपतवारों की रोकथाम करती है। 
  • मिट्टी की जुताई और उस पर होने वाली खेती में सुधार करती है। 
  • मृदा में जैविक गतिविधियां बढ़ाती है। 
  • हरी खाद के प्रयोग से मृदा में नत्रजन एवं कार्बनिक पदार्थो की वृद्धि करती है। 
  • मृदा कटाव अवरुद्ध करती है। परिणाम स्वरुप ऊपरी उपजाऊ सतह संरक्षित रहती है।
हरी खाद की फसलें इनमें मुख्यत ढैंचा, सनई आदि फलीदार पौधे नत्रजन की आपूर्ति दलहनी पौधों की भांति तो नहीं करते परन्तु मृदा में काफी मात्रा में जीवांस पदार्थ मिलाते हैं जैसे ज्वार, सूरज मुखी, जौ इत्यादि।
 हरी खाद की फसलों की विशेषताएं
 
  • फसल के वानस्पतिक भाग जैसे तना, पत्तियां, व शाखा आदि का अधिक होना। 
  • पौधे के तने कोमल और रसदार होने चाहिए। 
  • पौधों की जड़ों में पर्याप्त राइजोबियम ग्रंथिया बनना चाहिए। 
  • फसल की जड़ें जल्दी बढ़ने वाली एवं गहरी होनी चाहिए। 
  • पौधे कम जल की स्थिति में भी उगने वाले होने चाहिए। 
  • पौधों कम उर्वर मृदा में भी उपज और वृद्धि करने वाले होने चाहिए। 
  • फसल कीट व रोग अवरोधी होनी चाहिए। 
  • वह भूमि को ज्यादा मात्रा में ह्यूमस और पादक पोषक तत्व प्रदान कर सके। 
  • फसल का बीज सस्ता और आसानी से उपलब्ध होना चाहिए। 
  • इसका फसल चक्र में उचित स्थान होना चाहिए।
स्व स्थाने विधि 
इस विधि में हरी खाद वाली फसल उसी खेत में पैदा की जाती है तथा जुताई कर उसी खेत कि मिट्टी में दबा दी जाती है। इस तरह की फसलें अकेले तथा दूसरी मुख्य फसल के साथ मिश्रित रूप में बोई जाती है । यह विधि खास तौर पर सामान्य एवं अधक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त है।
हरी पत्ती की खाद इस विधि में झड़ियों के पत्ते तथा टहनियां लाकर खेत में दबाई जाती हैं वे कोमल भाग जमीन में थोड़ी सी नमी होने पर सड़ जाते हैं। इस प्रकार की हरी खाद बनाने के लिए सेस्बनिया, करंज तथा ग्लायारी सीडिया आदि का प्रयोग किया जाता है।

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