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बुधवार, 23 जनवरी 2013

कृषि कैलेण्डर ... माहवार


नए साल की शुरुवात हो चुकी है, ऐसे में हम बता रहे हैं साल के बारहों महीनो में किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यों के बारे में ...
 
जनवरी महीने के प्रमुख कृषि कार्य

इस महीने में गन्ने की तैयार फसल की कटाई की जाती है एवं कटाई के बाद गुड़ बनाया जाता है।
इसके उपरान्त गन्ने की नई फसल लगाने के लिए खेत को तैयार करते हैं छत्तीसगढ़ के किसान।

जो गेहूँ देर से बोये जाते हैं, उस गेहूँ में प्रथम सिंचाई किरीट जड़ अवस्था में करते हैं। अर्थात बोने के 21-25 दिन बाद ये किया जाता है।

रबी दलहनों में पहले सिंचाई के बाद निदाई गुड़ाई करते हैं।
चना, मटर, मसूर में कटुआ इल्ली के कोप से फसलों की रक्षा की व्यवस्था करते हैं।

मटर में 10-15 दिन के अंतर से ये फलियाँ तोड़ी जाती हैं।

चना, बूट दाना भरने के बाद बेचने के लिये बाजार भेजा जाता है।
सरसों, राई, अलसी, चना इत्यादि रबी फसलों में फूल आते समय सिंचाई करते हैं।
इसी समय सुरजमुखी मक्का और चारे हेतु सुडान धास की बोनी आरम्भ करते हैं।
इसी महीने में अमरुद, पपीते, आँवले और नींबू के पके फलों की तुड़ाई की जाती है।
इसी महीने में टमाटर के पौधों को बांस की लकड़ी का सहारा दिया जाता है।
आलू के पौधों पर मिट्टी चढ़ाई जाती है।
फरवरी माह के प्रमुख कृषि कार्य
जनवरी में उगाई गई सब्जियों के पौधों की रोपाई की जाती है। खेतों में भिण्डी, तोरई, कद्दुू, लौकी, चौलाई और मूली के बीजों को बोते हैं और इन सबकी सिंचाई की जाती है।
बौने गेहूँ में उर्वरक की आखरी मात्रा देकर सिंचाई करते हैं।
सूर्यमुखी के खेत में निदाई करते हैं और मिट्टी चढ़ाई जाती है।
गन्ने के स्वस्थ बीज का चुनाव कर बीजोपचार करते हैं।

बरसीम की कटाई 20 से 25 दिनों के अन्तर में की जाती है।

बरसीम, चटी के लिये मक्का, ज्वार, लोबिया और मक्का मिलाकर बोते हैं।
सरसों, अलसी यदि पकने लगे हों तो उन्हें काट लिया जाता है। नहीं तो ज्यादा पक जायेगा और बीज छिटकने लगेगें।
प्याज और लहसुन के खेतों में गुड़ाई करने के बाद मिट्टी चढ़ाते हैं।
आलू की खुदाई करते हैं। जाड़े के फूलों के बीज एकत्र करते हैं। गर्मियों के फलों के बीजों की बुवाई करते हैं।
मार्च माह के प्रमुख कृषि कार्य
चने और अलसी की फसल काटकर खेत को अगली फसल के लिए तैयार करते हैं।
चारे के लिए ज्वार व लोबिया की मिश्रित बोनी करते हैं।
गन्ने में पानी दिया जाता हैं। मक्का, बरबटी, लहसून फसल कटाई करके जानवरों को खिलाते हैं।
अरहर, सरसों, चने और दूसरे दलहनी फसलों की कटाई की जाती है।
खेत की जुताई करते हैं। इससे कीड़े मकोड़ों से पौधों की रक्षा होती है।
कटी हुई फसलों को सुखाया जाता है। उसके बाद उड़ावनी करने के बाद ऐसी जगह मे रखा जाता है जहाँ नमी नहीं है।
पहले गन्ने के खेत की सफाई होती है। और सिंचाई करते हैं। उर्वरक की जो मात्रा निर्धारित है, वह देकर सिंचाई करते हैं।

जो गेहूँ असिंचित है, उसमें 2-3 प्रतिशत यूरिया का घोल छिड़कते हैं।

प्याज और लहसुन की गुड़ाई की जाती है और उसके बाद मिट्टी चढ़ाते हैं।
आलू की खुदाई करते हैं। जो सब्जियाँ तैयार हैं उनकी सामयिक तुड़ाई करते हैं।
ग्रीष्मकाल के सब्जियों की बुवाई करते हैं - जैसे कद्दुू, लौकी, भिण्डी, मूली आदि सब्जियाँ।
पपीता के पेड़ों की सिंचाई की जाती है। केले की भी।
अप्रैल माह के प्रमुख कृषि कार्य
गेहूँ की फसल की कटाई करते हैं। और उसके बाद खेत को मूंग या चारे की फसल के लिये तैयार की जाती है।
गन्ने में पानी देकर निदाई-गुड़ाई करते हैं। उर्वरक देते हैं।
मक्का, बरबटी, लूसन को काटकर-जानवरों को खिलाया जाता है।
अहरह, जौ, सरसों, अलसी की कटाई की जाती है।
खेत की जुताई की जाती है ताकि कीड़े मकोड़ों से पौधों की रक्षा करे।
जो फसलो की कटाई हुई है, उसे सुखाकर उड़वनी कर अनाज को अच्छे से रखते हैं। कोठी, टंकी, बारदानों को अच्छी तरह साफ करने के बाद नया अनाज उनमें रखते हैं।
आम के बगीचे में पानी देते हैं।
नींबू जातिय पेड़ों में सिंचाई बन्द रखते हैं।
केले के पौधों में चारों ओर से निकलते हुए सकर्स को निकाल दिया जाता है।
ग्रीष्मकाल के भिण्डी के बीज से बुवाई करते हैं। दूसरे खड़ी फसलों की हर सप्ताह सिंचाई की जाती है। प्याज और लहसुन की खुदाई करते हैं।
मई महीने के प्रमुख कृषि कार्य
मई महीने में रबी फसलों की गहाई और सफाई करते हैं।
मक्का, ज्वार, लोबिया इत्यादि की बुताई शुरु हो जाती है।
खेतों की जुताई करते हैं - मेड़ों को बाँध देते हैं।

गन्ने की फसल में 90-92 दिन के अन्दर सिंचाई करते हैं।

मक्का, ज्वार, संकर नेपियर घास की फसलों की सिंचाई 10-12 दिन के अन्तर पर करते हैं।

इस महीने में केला और पपीता फलों को पत्तियों व बोरियों से ढक कर तेज धूप से बचाया जाता है।
कद्दुू जैसे फसलों में निदाई, गुड़ाई और सिंचाई करते हैं।
कद्दुू, तरबूज, ककड़ी, खरबूजा को कीट रोग से बचाते हैं। जो फल तैयार है, उसे तोड़ लेते हैं।
आम के पेड़ों की देखभाल अच्छे से करते हैं।
अरबी, अदरक, हल्दी की बुवाई की जाती है
सागौन, खम्हार, बीजा, महुआ, शीशम इत्यादि पौधों के बीज बोने का समय है तथा बीज बोने के बाद रोज सुबह शाम हल्की सिंचाई करते हैं।
जून महीने के प्रमुख कृषि कार्य
इस महीने में धान का रोपा लगाया जाता है - छत्तीसगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है, वहाँ धान बड़े पैमाने में लगाया जाती है।
सभी धनहा खेतों को बंधान बाँध दिया जाता है ताकि नमी हो। वर्षा होने के बाद खेत जोतकर बोनी करते हैं।
हरा चारा ताकी लगातार मिले इसीलिए ज्वार, मक्का, ग्वार, लोबिया, संकर नेपियर घास फसलों की बुवाई करते रहते हैं।
जो फसले बोई गयी है, उसकी सिंचाई करते रहते हैं।
मक्का, बाजरा, ज्वार, लोबिया की फसल, जो मार्च-अप्रैल में बोई गयी थी, उसकी कटाई करते हैं। मक्का को सूत आने पर काटते हैं। बाजरा को, जब बाली कोथ में हो, तब कटाई की जाती है। लोबिया और ज्वार की कटाई फूल आने पर की जाती है।
इस महीने में बारिस की जरुरत से ज्यादा पानी को खेत से निकालने का व्यवस्था करते हैं।
धान की रोपा लगाने के बाद उसी खेत में सवई, ढेंचा की बोनी हरी खाद के लिए करते हैं।
ऐसी जमीनों में, जहाँ पानी नहीं रुकता, धान की खेती नहीं करते हैं। वहाँ दलहन, तिलहन फसलों के बोनी की जाती है इस महीने में।
धान के खेत की मेड़ों पर अरहर या चारावाली फसलों की बोवाई करते हैं।
जुलाई महीने के प्रमुख कृषि कार्य
धनहा खेत में हरी खाद की फसल लगाते हैं। ये गहरे हल से जुताई करके किया जाता है।
धान का रोपा लगाया जाता है। जो धान जून के अन्त में बोयी गयी थी, उसकी निंदाई की जाती है।
मक्का, जो मई या जून में बोई गयी थी, उसकी निंदाइ की जाती है।
इस महीने में फिर से मक्का बाजरा, ज्वार, अरहर आदि लगाते हैं।
गन्ने पर मिट्टी चढ़ायी जाती है। कपास, मूंगफली की निंदाई-गुड़ाई करते हैं।
सूरजमुखी की बुवाई करना शूरु हो जाता है।
चारे के लिये सूडान घास, मक्का, नेथियर, रोड्स पारा आदि घास लगायी जाती है।
आम के फलों की तुड़ाई करते हैं, हर फलदार पौधे को अच्छे से, ठीक मात्र में गोबर की खाद दी जाती है।
नींबू में खाद देते हैं। अमरुद के पौधे लगाये जाते हैं। केले के नये बगीचे लगाते हैं और पौधों में खाद देते हैं।
पपीते के बगीचे लगाते हैं। लताओं वाली सब्जियों के पौधों का मण्डल में चढ़ाते हैं।
जून महीने में तैयार सब्जियों के पौधे का रोपण करते हैं।
अगस्त माह के प्रमुख कृषि कार्य
चारे की फसलों की कटाई की जाती है। जैसे ज्वार, बरबटी।
सूरजमुखी की फसल खाली खेतों में लगाते हैं।
इस महीने के आखरी दिनों में रामतिल की फसल लगाते हैं।
गन्ने एवं मूंगफली की निदाई करते हैं एवं गुड़ाई करते हैं। उसके बाद उस पर मिट्टी चढ़ायी जाती है।
धान की फसल में उर्वरक की मात्रा दिया जाता है।
धान, ज्वार, अरहर, मूंग, उड़द, मक्का, सोयाबीन इत्यादि फसलों के खरपतवार निकाली जाती हैं, गुड़ाई की जाती है।
मूंगफली में फूल लगने शुरु हो जाने के बाद मिट्टी चढ़ाते हैं।
इस महीने में अगर मक्के की फसल तैयार हो गई है तो भुट्टे तोड़ लेते हैं। और फिर खेत को रबी की फसल के लिये तैयार करते हैं।
आम के नये बगीचे लगता हैं। अमरुद के नये बगीचे इस समय लगाते हैं। पपीता में खाद देते हैं। भिण्डी और बरबटी की तुड़ाई करते हैं। सभी फसलों को कीटनाशक, फंफूदीनाशक दवाईयों द्वारा कीड़ो, बीमारियों से बचाते हैं।
सितम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य
सितम्बर में मक्का ज्वार की कटाई की जाती है।
धान के खेत में नमी होनी चाहिये, यदि नमी कम हो तो सिंचाई करते हैं।
महीने के अन्त में अलसी, सरसों एवं कुसुम इत्यादि फसलें बोते हैं।
रबी की फसलों के लिये खेत की तैयारी करते हैं।
आलू, जो जल्दी पकते हैं, उसे बोया जाता है।
आम के लगाये गये नये पौधों की सुरक्षा करते हैं।
अमरुद के बगीचों की सिंचाई करते हैं।
धनिया की बुवाई करते हैं। देशी मटर, प्याज, मूली, गाजर, चुकन्दर, सेम, सौफ, देर से आने वाली गोभी, पालक की बुवाई करते हैं।
भिण्डी और बरबरी आदि तैयार फसलों की तुड़ाई करते हैं।
अक्टूबर माह के प्रमुख कृषि कार्य
रबी की फसलों के लिए खेत की तैयारी करते हैं।
धान की कटाई होती है। आलू की अगेती फसल की बोनी करते हैं। अमरुद वृक्षों में सिंचाई करते हैं। गन्ने की खड़ी फसल में सिंचाई करते हैं। खड़ी फसल में से सूखे पत्ते निकाल देते हैं।
चना, मटर, मसूर, तिवड़ा, कुसुम, सरसों की बोनी करते हैं।
रबी साग-सब्जियों की गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, पत्तागोभी, गांठ गोभी की रोपणी डाले जाते हैं।
नवम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य
सोयाबीन, तिल की काटई करते हैं और उस खेत को रबी फसल के लिए तैयार करते हैं।
धान की कटाई करते हैं और खेत को अगली फसल बोने के लिए तैयार करते हैं।
गेहूँ की बोनी इसी माह में होती है। यदि खेत में नमी न हो तो बोनी के बाद सिंचाई करते हैं।
गेहूँ जो असिंचित है, उसमें से खपपतवार निकालते हैं।
चना, मटर, सरसों की बोनी करते हैं।
कपास की चुनाई नियमित समय में करते हैं।
मूँगफली की खुदाई पूर्ण करते हैं - ज्वार के भुट्टे तोड़ लिए जाते हैं।
गन्ने की फसल अगर तैयार हो गई हो तो उसे काट लेते हैं।
अरहर, जो जल्दी पकने वाली है, उसे काटकर खेत की तैयारी करते हैं।
नींबू जैसी फसलों में सिंचाई बन्द कर देते हैं।
पके हुए अमरुदों की तुड़ाई करते हैं।
केले की फसल में खाद देकर फल से लदे हुए वृक्षों को टेक लगाकर सहारा दिया जाता है।
पके हुए पपीते को तोड़ते हैं। आलू की फसल में मिट्टी चढ़ाते हैं।
बैंगन, मिर्च, टमाटर आदि की तुड़ाई करते हैं।
दिसम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य
इस महीने में धान की कटाई तथा उड़ाई करवाकर, उसे सुखाकर कोठियों में भरकर रखते हैं।
गन्ने के फसल लगाने के लिए खेत को अच्छी तरह जोतकर तैयार करते हैं। गुड़ बनाना भी शुरु कर देते हैं।

सिंचित गेहूँ में 20-22 दिनों के अन्तर से सिंचाई करते हैं।

खाली खेतों में जुताई, गुड़ाई, मेड़ बनाने एवं जमीन को सुधारते हैं।
अमरुद, पपीते, आंवले और नींबू की तुड़ाई करते हैं।
आलू के पौधों पर मिट्टी चढ़ाते हैं।

टमाटर के पौधों को बाँस के लकड़ी का सहारा देते हैं।

सफ़ेद सोना ..... मशरूम

मशरूम की खेती के लिए दिशानिर्देश


हजारों वर्षों से विश्‍वभर में मशरूमों की उपयोगिता भोजन और औषध दोनों ही रूपों में रही है। ये पोषण का भरपूर स्रोत हैं और स्‍वास्‍थ्‍य खाद्यों का एक बड़ा हिस्‍सा बनाते हैं। मशरूमों में वसा की मात्रा बिल्‍कुल कम होती हैं, विशेषकर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में, और इस वसायुक्‍त भाग में मुख्‍यतया लिनोलिक अम्‍ल जैसे असंतप्तिकृत वसायुक्‍त अम्‍ल होते हैं, ये स्‍वस्‍थ ह्दय और ह्दय संबंधी प्रक्रिया के लिए आदर्श भोजन हो सकता है। पहले, मशरूम का सेवन विश्‍व के विशिष्‍ट प्रदेशों और क्षेत्रों त‍क ही सीमित था पर वैश्‍वीकरण के कारण विभिन्‍न संस्‍कृतियों के बीच संप्रेषण और बढ़ते हुए उपभोक्‍तावाद ने सभी क्षेत्रों में मशरूमों की पहुंच को सुनिश्चित किया है। मशरूम तेजी से विभिन्‍न पाक पुस्‍तक और रोजमर्रा के उपयोग में अपना स्‍थान बना रहे हैं। एक आम आदमी को रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। उपभोग की चालू प्रवृत्ति मशरूम निर्यात के क्षेत्र में बढ़ते अवसरों को दर्शाती है।
भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक आम प्र‍जातियां वाईट बटन मशरूम और ऑयस्‍टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाईट बटन मशरूम का ज्‍यादातर उत्‍पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्‍परागत तरीके से की जाती है। सामान्‍यता, अपॉश्‍चयरीकृत कूडा खाद का प्रयोग किया जाता है, इसलिए उपज बहुत कम होती है। तथापि पिछले कुछ वर्षों में बेहतर कृषि-विज्ञान पदधातियों की शुरूआत के परिणामस्‍वरूप मशरूमों की उपज में वृद्धि हुई है। आम वाईट बटन मशरूम की खेती के लिए तकनीकी कौशल की आवश्‍यकता है। अन्‍य कारकों के अलावा, इस प्रणाली के लिए नमी चाहिए, दो अलग तापमान चाहिए अर्थात पैदा करने के लिए अथवा प्ररोहण वृद्धि के लिए (स्‍पॉन रन) 220-280 डिग्री से, प्रजनन अवस्‍था के लिए (फल निर्माण) : 150-180 डिग्री से; नमी: 85-95 प्रतिशत और पर्याप्‍त संवातन सब्‍स्‍ट्रेट के दौरान मिलना चाहिए जो विसंक्रमित हैं और अत्‍यंत रोगाणुरहित परिस्थिति के तहत उगाए न जाने पर आसानी से संदूषित हो सकते हैं। अत: 100 डिग्री से. पर वाष्‍पन (पास्‍तुरीकरण) अधिक स्‍वीकार्य है।

प्‍लयूरोटस, ऑएस्‍टर मशरूम का वैज्ञानिक नाम है। भारत के कई भागों में, यह ढींगरी के नाम से जाना जाता है। इस मशरूम की कई प्रजातिया है उदाहणार्थ :- प्‍लयूरोटस ऑस्‍टरीयटस, पी सजोर-काजू, पी. फ्लोरिडा, पी. सैपीडस, पी. फ्लैबेलैटस, पी एरीनजी तथा कई अन्‍य भोज्‍य प्रजातियां। मशरूम उगाना एक ऐसा व्‍यवसाय है, जिसके लिए अध्‍यवसाय धैर्य और बुद्धिसंगत देख-रेख जरूरी है और ऐसा कौशल चाहिए जिसे केवल बुद्धिसंगत अनुभव द्वारा ही विकसित किया जा सकता है।
प्‍लयूरोटस मशरूमों की प्ररोहण वृद्धि (पैदा करने का दौर) और प्रजनन चरण के लिए 200-300 डिग्री का तापमान होना चाहिए। मध्‍य समुद्र स्‍तर से 1100-1500 मीटर की ऊचांई पर उच्‍च तुंगता पर इसकी खेती करने का उपयुक्‍त समय मार्च से अक्‍तूबर है, मध्‍य समुद्र स्‍तर से 600-1100 मीटर की ऊचांई पर मध्‍य तुंगता पर फरवरी से मई और सितंबर से नवंबर है और समुद्र स्‍तर से 600 मीटर नीचे की निम्‍न तुंगता पर अक्‍तूबर से मार्च है।
आवश्‍यक सामान
1.      धान के तिनके - फफूंदी रहित ताजे सुनहरे पीले धान के तिनके, जो वर्षा से बचाकर किसी सूखे स्‍थान पर रखे गए हो।
2.      400 गेज के प्रमाप की मोटाई वाली प्‍लास्टिक शीट - एक ब्‍लाक बनाने के लिए 1 वर्ग मी. की प्‍लास्टिक शीट चाहिए।
3.      लकड़ी के सांचे - 45X30X15 से. मी. के माप के लकड़ी के सांचे, जिनमें से किसी का भी सिरा या तला न हो, पर 44X29 से. मी. के आयाम का एक अलग लकड़ी का कवर हो।
4.      तिनकों को काटने के लिए गंडासा या भूसा कटर।
5.      तिनकों को उबालने के लिए ड्रम (कम से कम दो)
6.      जूट की रस्‍सी, नारियल की रस्‍सी या प्‍लास्टिक की रस्सियां
7.      टाट का बोरे
8.      स्‍पान अथवा मशरूम जीवाणु जिन्‍हें सहायक रोगविज्ञानी, मशरूम विकास केन्‍द्र, से प्रत्‍येक ब्‍लॉक के लिए प्राप्‍त किया जा सकता है।
9.      एक स्‍प्रेयर
10.  तिनकों के भंडारण के लिए शेड 10X8 मी. आकार का।




प्रक्रिया :
कूड़ा खाद तैयार करना

कूड़ा खाद बनाने के लिए अन्‍न के तिनकों (गेंहू, मक्‍का, धान, और चावल), मक्‍कई की डंडिया, गन्‍ने की कोई जैसे किसी भी कृषि उपोत्‍पाद अथवा किसी भी अन्‍य सेल्‍यूलोस अपशिष्‍ट का उपयोग किया जा सकता है। गेंहू के तिनकों की फसल ताजी होनी चाहिए और ये चमकते सुनहरे रंग के हो तथा इसे वर्षा से बचा कर रखा गया है। ये तिनके लगभग 5-8 से. मी. लंबे टुकडों में होने चाहिए अन्‍यथा लंबे तिनकों से तैयार किया गया ढेर कम सघन होगा जिससे अनुचित किण्‍वन हो सकता है। इसके विप‍रीत, बहुत छोटे तिनके ढ़ेर को बहुत अधिक सघन बना देंगे जिससे ढ़ेर के बीच तक पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन नहीं पहुंच पाएगा जो अनएरोबिक किण्‍वन में परिणामित होगा। गेंहू के तिनके अथवा उपर्युक्‍त सामान में से सभी में सूल्‍यूलोस, हेमीसेल्‍यूलोस और लिग्‍निन होता है, जिनका उपयोग कार्बन के रूप में मशरूम कवक वर्धन के लिए किया जाता है। ये सभी कूडा खाद बनाने के दौरान माइक्रोफ्लोरा के निर्माण के लिए उचित वायुमिश्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सबस्‍टूटे को भौतिक ढांचा भी प्रदान करता है। चावल और मक्‍कई के तिनके अत्‍यधिक कोमल होते है, ये कूडा खाद बनाने के समय जल्‍दी से अवक्रमित हो जाते हैं और गेंहू के तिनकों की अपेक्षा अधिक पानी सोखते हैं। अत:, इन सबस्‍टूट्स का प्रयोग करते समय प्रयोग किए जाने वाले पानी की प्रमात्रा, उलटने का समय और दिए गए संपूरकों की दर और प्रकार के बीच समायोजन का ध्‍यान रखना चाहिए। चूंकि कूड़ा खाद तैयार करने में प्रयुक्‍त उपोत्‍पादों में किण्‍वन प्रक्रिया के लिए जरूरी नाइट्रोजन और अन्‍य संघटक, पर्याप्‍त मात्रा में नहीं होते, इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, यह मिश्रण नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट्स से संपूरित किया जाता है।

स्‍पानिंग
स्‍पानिंग अधिकतम तथा सामयिक उत्‍पाद के लिए अंडों का मिश्रण है। अण्‍डज के लिए अधिकतम खुराक कम्‍पोस्‍ट के ताजे भार के 0.5 तथा 0.75 प्रतिशत के बीच होती है। निम्‍नतर दरों के फलस्‍वरूप माइसीलियम का कम विस्‍तार होगा तथा रोगों एवं प्रतिद्वान्द्वियों के अवसरों में वृद्धि होगी उच्‍चतर दरों से अण्‍डज की कीमत में वद्धि होगी तथा अण्‍डज की उच्‍च दर के फलस्‍परूप कभी-कभी कम्‍पोस्‍ट की असाधारण ऊष्‍मा हो जाती है।

ए बाइपोरस के लिए अधिकतम तापमान 230 से (+) (-) 20 से./उपज कक्ष में सापेक्ष आर्द्रता अण्‍डज के समय 85-90 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए।
कटाई

थैले को खोलने के 3 से 4 दिन बाद मशरूम प्रिमआर्डिया रूप धारण करना शुरू कर देते हैं। परिपक्‍व मशरूम अन्‍य 2 से 3 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक औसत जैविक कारगरहा (काटे गए मशरूम का ताजा भार जिसे एयर ड्राई सबट्रेट द्वारा विभक्‍त किया गया हो X100) 80 से 150 प्रतिशत के बीच हो सकती है और कभी-कभी उससे ज्‍यादा। मशरूम को काटने के लिए उन्‍हें जल से पकड़ा जाता है तथा हल्‍के से मरोड़ा जाता है तथा खींच लिया जाता है। चाकू का इस्‍तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मशरूम रेफ्रीजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक जाता बना रहता है।

मशरूम गृ‍ह/कक्ष
क्‍यूब तैयार करने का कक्ष
एक आदर्श कक्ष आर.सी.सी. फर्श का होना चाहिए, रोशनदानयुक्‍त एवं सूखा होना चाहिए। लकड़ी के ढांचे को रखने, क्‍यूब एवं अन्‍य आर.सी.सी. चबूतरा के लिए कक्ष के अंदर 2 सेमी ऊंचा चबूतरा बनाया जाना चाहिए, ऐसा भूसे के पाश्‍चुरीकृत थैलों को बाहर निकालने की आवश्‍यतानुसार होना चाहिए। जिन सामग्रियों के लिए क्‍यूब को बनाने की आवश्‍यकता है, उन्‍हें कक्ष के अंदर रखा जाना चाहिए। क्‍यूब को तैयार करने वाले व्‍यक्तियों को ही कमरे के अंदर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।

उठमायन कक्ष
उण्‍डजों के संचालन के लिए कमरा यह कमरा आरसीसी भवन अथवा आसाम विस्‍म (घर में कोई अलग कमरा) का कमरा होना चाहिए तथा खण्‍डों को रखने के लिए तीन स्‍तरों में साफ छेद वाले बांस की आलमारी लगाई जानी चाहिए। पहला स्‍तर जमीन से 100 सेमी ऊपर होना चाहिए तथा दूसरा स्‍तर कम से कम 60 सेमी ऊंचा होना चाहिए।
फसल कक्ष
एक आदर्श गृह/कक्ष आर.सी.सी. भवन होगा जिसमें विधिवत उष्‍मारोधन एवं कक्ष को ठंडा एवं गरम करने का प्रावधान स्‍थापित किया गया होगा। तथापि बांस, थप्‍पर तथा मिट्टी प्‍लास्‍टर जैसे स्‍थानीय रूप से उपलब्‍ध सामग्रियों का इस्‍तेमाल करते हुए स्‍वदेशी अल्‍प लागत वाले घर की सिफारिश की गई है। मिट्टी एवं गोबर के समान मिश्रण वाले स्पिलिट बांस की दीवारें बनाई जा सकती है।

कच्‍ची ऊष्‍मारोधक प्रणाली का प्रावधान करने के लिए घर के चारों ओर एक दूसरी दीवार बनाई जाती है जिसमें प्रथम एवं दूसरी दीवार के मध्‍य 15 सेमी का अंत्तर रखा जाता है। बाहरी दीवार के बाहरी तरफ मिट्टी का पलास्‍टर किया जाना चाहिए। दो दीवारों के मध्‍य में वायु का स्‍थान ऊष्‍मा रोधक का कार्य करेगा क्‍योंकि वायु ऊष्‍मा का कुचालक होती है। यहां तक कि एक बेहतर ऊष्‍मारोधन का प्रावधान किया जा सकता है यदि दीवारों के बीच के स्‍थान को अच्‍छी तरह से सूखे 8 ए छप्‍पर से भर दिया जाए। घर का फर्श वरीयत: सीमेंट का होना चाहिए किन्‍तु जहां यह संभव नही है, अच्‍छी तरह से कूटा हुआ एवं प्‍लास्‍टरयुक्‍त मिट्टी का फर्श पर्याप्‍त होगा। तथापि, मिट्टी की फर्श के मामले में अधिक सावधानी बरतनी होगी। छत मोटे छापर की तहो अथवा वरीयत: सीमेंट की शीटों की बनाई जानी चाहिए। छप्‍पर की छत से अनावश्‍यक सामग्रियों के संदूषण से बचने के लिए एक नकली छत आवश्‍यक है। प्रवेश द्वार के अलावा, कक्ष में वायु के आने एवं निकलने के लिए कमरे के आयु एंव पश्‍च भाग के ऊपर एवं नीचे दोनों तरफ से रोशनदानों का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। घर तथा कक्षा ऊर्ध्‍वाधर एवं अनुप्रस्‍थ बांस के खम्‍भों के ढांचो का होना चाहिए जो ऊष्‍मायन अवधि के उपरान्‍त खंडों को टांगने के लिए अपेक्षित है। अनुप्रस्‍थ खम्‍भों को ऊष्‍मायन आलमारी के रूप में 3 स्‍तरीय प्रणाली में व्‍यवस्थि‍त किया जा सकता है। खम्‍भे वरीयत: दीवारों से 60 सेमी दूर तथा तीनों स्‍तरों की प्रत्‍येक पंक्ति के बीच में होने चाहिए, 1 सेमी की न्‍यूनतम जगह बनाई रखी जानी चाहिए। 3.0X2.5X2.0 मी. का फसल कक्ष 35 से 40 क्‍यूबों को समायोजित करेगा।

विधि
भूसे को हाथ के यंत्र से 3-5 सेमी लम्‍बे टुकडों में काटिए तथा टाट की बोरी में भर दीजिए। एक ड्रम में पानी उबालिए। जब पानी उबलना शुरू हो जाए तो भूसे के साथ टाट की बोरी को उबलते पानी में रख दीजिए तथा 15-20 मिनट तक उबालिए। इसके पश्‍चात फेरी को ड्रम से हटा लीजिए तथा 8-10 घंटे तक पड़े रहने दीजिए ताकि अतिरिक्‍त पानी निकल जाए तथा चोकर को ठंडा होने दीजिए। इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि ब्‍लॉक बनाने तक थैले को खुला न छोड़ा जाए क्‍योंकि ऐसा होने पर उबला हुआ चोकर संदूषित हो जाएगा। हथेलियों के बीच में चोकर को निचोड़कर चोकर की वांछित नमी तत्‍व का परीक्षण किया जा सकता है तथा सुनिश्चित कीजिए कि पानी की बूंदे चोकर से बाहर न निकलें।
चोकर के पाश्‍चुरीकृत का दूसरा तरीका भापन है। इस तरीके के लिए ड्रम में थोड़े परिवर्तन की आवश्‍यकता होती है (ड्रम के ढक्‍कन में एक छोटा छेद कीजिए तथा चोकर को उबालते समय रबर की ट्यूब से ढक्‍कन के चारों ओर सील लगा दीजिए) टुकड़े-डुकड़े किए गए चोकर को पहले भिगो दीजिए तथा अतिरिक्‍त पानी निकाल दिया जाए। ड्रम में कुछ पत्‍थर डाल दीजिए तथा पत्‍थर के स्‍तर तक पानी उड़ेलिए। बांस की टोकरी में रखकर गीले चोकर को उबाल दें तथा ड्रम के अंदर पत्‍थर के ऊपर टोकरी को रख दें। ड्रम के ढक्‍कन को बंद कर दें तथा रबर की ट्यूब से ढक्‍कन की नेमि को सील कर दीजिए। उबले हुए पानी से उत्‍पन्‍न भाप चोकर से गुजरते हुए इसे पाश्‍चु‍रीकृत करेगी। उबालने के बाद चोकर को पहले से कीटाणुरहित किए गए बोरी में स्‍थानांतरित कर दिजिए तथा 8-10 घंटे तक इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दीजिए।
लकड़ी का एक सांचा लीजिए तथा चिकने फर्श पर रख दीजिए। पटसून की दो रस्सियों ऊर्ध्‍वाधर एवं अनुप्रस्‍थ रूप में रख दीजिए। प्‍लास्टिक की शीट से अस्‍तर लगाइए जिसे पहले उबलते पानी में डुबोकर कीटाणुरहित किया गया है।
-        5 सेमी. के उबले चोकर को भर दीजिए तथा लकड़ी के ढक्‍कन की मदद से इसे सम्‍पीडित कीजिए तथा पूरी सतह पर स्‍पान को छिड़किए।
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-        स्‍पानिंग की प्रथम तह के उपरान्‍त 5 सेमी का अन्‍य चोकर रखिए तथा सतह पर पुन: स्‍थान का छिड़काव करें तथा प्रथम तह में किए गए की तरह इसे सम्‍पीडित कीजिए। इस प्रकार तह पर स्‍पान को 4 से 6 तह तक के लिए तब तक छिड़किए जब तक चोकर सांचे के शीर्ष के स्‍तर तक न आ जाए। एक (1) एक पैकेट स्‍पान का इस्‍तेमाल 1 क्‍यूब अथवा ब्‍लाक के लिए किया जाना चाहिए।
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-        अब प्‍लास्टिक की शीट सांचे की शीर्ष पर मोडी जाए प्‍लास्टिक के नीचे पहले रखी गई पटसून की रस्सियों से उसे बांध दिया जाए।
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-        बांधने के उपरांत सांचे को हटाया जा सकता है तथा चोकर का आयताकर खंड पीछे बच जाता है।
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-        वायु के लिए खंड के सभी तरफ छेद (2 मिमी व्‍यास) बनायें।
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-        ऊष्‍मायन कक्ष में ब्‍लॉक को रख दीजिए उन्‍हें सरल तह में एक दूसरे के बगल रखा जाए तथा इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि उन्‍हें फर्श पर अथवा एक दूसरे के शीर्ष पर सीधे न रखा जाए क्‍योंकि इससे अतिरिक्‍त ऊष्‍मा उत्‍पन्‍न होगी।
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-        ब्‍लॉक का तापमान 250 से. पर रखा जाए। ब्‍लॉक के छिद्रों में एक तापमापक डालकर इसे नोट किया जा सकता है। यदि तापमान 250 से. से ऊपर जाता है तो कमरे में गैस भरने की सलाह दी जाती है। तथा यदि तापमान में गिरवाट आती है, तो कमरे को धीरे-धीरे गर्म किया जाना चाहिए।
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-        पूरे पयाल में फैलने के लिए स्‍पान को 12 से 15 दिन लगता है तथा जब पूरा ब्‍लॉक सफेद हो जाए तो यह निशान है कि स्‍पान संचालन पूरा हो गया है।
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-        अण्‍डज परिपालन के उपरांत ब्‍लॉक से रस्‍सी तथा प्‍लास्टिक की शीट को हटा दीजिए। नारियल की रस्‍सी से ब्‍लॉक को अनुप्रस्‍थ रूप में बांध दीजिए तथा इसे फसल कक्ष में लटका दीजिए। इस अवस्‍था से आगे कमरे की सापेक्ष आर्द्रता 85 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसे दीवारों तथा कमरे की फर्श पर जल छिड़क करके समय-समय पर किया जा सकता है। यदि फर्श सीमेंट का है, तो सलाह दी जाती है कि फर्श पर पानी डालिए ताकि फर्श पर हमेश पानी रहे। यदि खंड हल्‍का से सूखने का लक्षण जिससे लगे तो स्‍प्रेयर के माध्‍यम से स्‍प्रे किया जा सकता है।
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-        ए‍क सप्‍ताह से 10 दिन के भीतर ब्‍लॉक की सतह पर छोटे-छोटे पिन शीर्ष दिखाई पड़ेगे तथा ये एक या दो दिन के भीतर पूरे आकार के मशरूम हो जाएंगे।
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-        जब फल बनना शुरू होता है तो हवा की जरूरत बढ़ जाती है। अत: जब एक बार फल बनना शुरू हो जाता है तो आवश्‍यक है कि हर 6 से 12 घण्‍टो बाद कमरे के सामने और पीछे दिए गए वेंटीलेटर खोलकर ताजी हवा अंदर ली जाए।
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-        जब आवरणों की परिधि ऊपर की ओर मुड़ना शुरू हो जाती है तो फल काया (मशरूम) तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। ऐसा जाहिर होगा क्‍योंकि छोटी-छोटी सिलवटें आवरण पर दिखाई पड़ने लगती है। मशरूम को काटने के लिए अंगूठे एवं तर्जनी से आधार पर डाल को पकड़ लीजिए तथा हल्‍के क्‍लाकवाइज मोड़ से पुआल अथवा किसी छोटे मशरूम उत्‍पादन को विक्षोभित किए बिना मशरूम को डाल से अलग कर लीजिए। काटने के लिए चाकू अथवा कैंची का इस्‍तेमाल मत करें। एक सप्‍ताह के बाद ब्‍लॉक में फिर से फल आने शुरू हो जाएंगे।
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उपज :
मशरूम प्रवाह में दिखाई पड़ते है। एक क्‍यूब से लगभग 2 से 3 प्रवाह काटे जा सकते है। प्रथम प्रवाह की उपज ज्‍यादा होती है तथा तत्‍पश्‍चात धीरे-धीरे कम होने लगती है तथा एक क्‍यूब से 1.5 किग्रा से 2 किग्रा तक के ताजे मशरूम की कुल उपज प्राप्‍त होती है। इसके बाद क्‍यूब को छोड़ दिया जाता है तथा फसल कक्ष से काफी दूर पर स्थित एक गड्ढे में पाट दिया जाता है अथवा बगीचे अथवा खेत में खाद के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
परिरक्षण
मशरूम को ताजा खाया जा सकता है अथवा इसे सुखाया जा सकता है। चूंकि वे शीघ्र ही नष्‍ट हो जाने वाले प्रकृति के होते हैं तो आगे के इस्‍तेमाल अथवा दूरस्‍थ विपणन के लिए उनका परिरक्षण आवश्‍यक है। ओयेस्‍टर मशरूम को परि‍रक्षित करने का सबसे पुराना एवं सस्‍ता तरीका है धूप में सुखाना।

गर्म हवा में सुखाना कारगर उपयोग है जिसके द्वारा मशरूम को डिहाइड्रेटर (स्‍थानीय रूप से तैयार उपस्‍कर) नामक उपस्‍कर में सुखाया जाता है मशरूम को एक बंद कमरे में लगे हुए तार के जाल से युक्‍त रैक में रखा जाता है तथा गर्म हवा (500 से 550 से) 7-8 घंटे तक रैक के माध्‍यम से गुजरती है। मशरूम को सुखाने के बाद इसे वायुसह डिब्‍बे में स्‍टोर किया जाता है अथवा 6-8 माह के लिए पोलीबैग में सील कर दिया जाता है। पूरी तरह से सोखने के उपरांत मशरूम अपने ताजे वजन से कम होकर एक से घट कर तैरहवां भाग रह जाता है जो सुरक्षा के आधार पर अलग-अलग होता है। मशरूम को ऊष्‍ण जल में भिगोकर आसानी से पुन: जलित किया जा सकता है।
रोग एवं पीट
यदि मशरूम की देखभाल न की जाए तो अनेक रोग एवं पीट इस पर हमला कर देते हैं।
रोग

1.      हरी फफूंद (ट्राइकोडर्मा विरिडे) : यह कस्‍तूरा कुकुरमुत्ते में सबसे अधिक सामान्‍य रोग है जहां क्‍यूबों पर हरे रंग के धब्‍बे दिखाई पड़ते है।
1.
नियंत्रण : फॉर्मालिन घोल में कपड़े को डुबोइए (40 प्रतिशत) तथा प्रभावित क्षेत्र को पोंछ दीजिए। यदि फफूंदी आधे से अधिक क्‍यूब पर आक्रमण करती है तो सम्‍पूर्ण क्‍यूब को हटा दिया जाना चाहिए। इस बात की सावधानी रखी जानी चाहिए कि दूषित क्‍यूब को पुनर्संक्रमण से बचाने के लिए फसल कक्ष से काफी दूर स्‍थान पर जला दिया जाए अथवा दफना दिया जाए।
कीड़े
2.      मक्खियां : देखा गया है कि स्‍कैरिड मक्खियां, फोरिड मक्खियां, सेसिड मक्खियां कुकुरमुत्ते तथा स्‍पॉन की गंध पर हमला करती हैं। वे भूसी अथवा कुकुरमुत्ते अथवा उनसे पैदा होने वाले अण्‍डों पर अण्‍डे देती हैं तथा फसल को नष्‍ट कर देती हैं। अण्‍डे माइसीलियम, मशरूम पर निर्वाह करते हैं एवं फल पैदा करने वाले शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं तथा यह उपभोग के लिए अनुपयुक्‍त हो जाता है।

नियंत्रण : फसल की अवधि में बड़ी मक्खियों के प्रवेश को रोकने के लिए दरवाजों, खिडकियों अथवा रोशनदानों पर पर्दा लगा दीजिए यदि कोई, 30 मेश नाइलोन अथवा वायर नेट का पर्दा। मशरूम गृहों में मक्‍खीदान अथवा मक्खियों को भगाने की दवा का इस्‍तेमाल करें।
3.      कुटकी : ये बहुत पतले एवं रेंगने वाले छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जो कुकुरमुत्ते के शरीर पर दिखाई देते हैं। वे हानिकारक नहीं होते है, किन्‍तु जब वे बड़ी संख्‍या में मौजूद होते है तो उत्‍पादक उनसे चिंतित रहता है।
3.
नियंत्रण : घर तथा पर्यावरण को साफ सुथरा रखें।

4.      शम्‍बूक, घोंघा : ये पीट मशरूम के पूरे भाग को खा जाते हैं जो बाद में संक्रमित हो जाते हैं तथा वैक्‍टीरिया फसल के गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

नियंत्रण : क्‍यूब से पीटों को हटाइए तथा उन्‍हें मार डालिए। साफ सुथरी स्थिति को बनाये रखें।
अन्‍य कीटाणु
5.      कृन्‍तक : कृन्‍तकों का हमला ज्‍यादातर अल्‍प कीमत वाले मशरूम हाउसों पर पाया जाता है। वे अनाज की स्‍पॉन को खाते हैं तथा क्‍यूबों के अंदर छेद कर देते हैं।

नियंत्रण : मशरूम गृहों में चूहा विष चारे का इस्‍तेमाल करें। चूहों की बिलों को कांच के टुकडों एवं पलास्‍टर से बंद कर दें।
6.      इंक कैप (कोपरीनस सैप) यह मशरूम का खर-पतवार है जो फसल होने के पहले क्‍यूबों पर विकसित होता है। वे बाद में परिपक्‍वता अवधि पर काले स्लिमिंग काई में विखंडित हो जाते है।
6.
नियंत्रण : सिफारिश किए गए नियंत्रण उपाय ही कोपरीनस को क्‍यूब से शारीरिक रूप से हटा सकता है।
सावधानियां
��एक परहेज सौ इलाज�� मशरूम उत्‍पादन का मूलभूत सिद्धांत है क्‍योंकि यह एक नाजुक फसल होती है तथा इसके इलाज का उपाय प्राय: मुश्किल होता है। मशरूम स्‍वयं एक फफूंद है, जो फफूंद संबंधी रोग दिखाई पड़ते हैं फिर इसे नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है क्‍योंकि रोग के लिए इस्‍तेमाल किया गया रसायन मशरूम को ही बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इस प्रकार, किसी विदेशी ��कीडे�� अथवा ��दूषण�� के प्रवेश को रोकने के लिए शुरू से ही काफी सावधानी बरती जानी चाहिए। निम्‍नलिखित सावधानियों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए :
मशरूम उगाने के लिए सर्वप्रथम अपेक्षा स्‍वच्‍छ एवं साफ दशाएं हैं। मशरूम की खेती करने के लिए अधिकतर समस्‍याएं अनुपयुक्‍त स्‍वच्‍छता के कारण होती है :
1.            जिस कक्ष में मशरूम को उगाया जाना है उसे पूरी तरह धोया जाए तथा तब उसे चूने से धोया जाए। फर्श को भी चूने से धोया जाए।
1.
2.            घर का पर्यावरण ठहरे पानी वाली नालियों, झाडियों अथवा खरपतवारों से वंचित होना चाहिए क्‍योंकि इनमें खतरनाक रोग एवं कीटाणु पीटाणु निवास करते हैं।
2.
3.            प्रत्‍येक कक्ष के प्रवेश द्वार पर एक गर्त होनी चाहिए जिसमें 2 प्रतिशत फॉर्मालिन भरा गया हो जिसमें कमरे में प्रवेश करने से पहले जूतों अथवा पैरों को डुबोया जाए।
3.
4.            कार्य करने वाले साफ-सुधरे हों तो वरीयत: स्‍वच्‍छ कपड़े पहनें।
4.
5.            घर के चारों ओर कोई अचरा अथवा कूड़ा न छोड़ा जाए।
5.
6.            दूषण की स्थिति में दूषित खंड को ऐसे स्‍‍थान त‍क हटाया जाए जो घर से काफी दूर हो तथा उसे गड्ढे में गाड़ दिया जाए अथवा डाला दिया जाए।
6.
7.            प्रत्‍येक फसल प्रक्रिया के अंत में कमरे को फिर से साफ किया जाए तथा सफेदी कराई जाए एवं फोर्मालिन से धूम्रण कराया जाए।
7.
8.            प्‍लास्टिक सीटों को पूरी तरह से धुला जाए तथा पत्‍पश्‍चात तथा अंतिम धुलाई के तौर पर 2 प्रतिशत फोर्मालिन में भिगोया जाए तथा उसके पश्‍चात सुखाया जाए तथा ऐसा प्रत्‍येक ढेर से हटाने के उपरांत किया जाए।
8.
9.            भूसी का गिरा हुआ कोई टुकड़ा अथवा मशरूम कमरे की फर्श पर छूटना नहीं चाहिए। मशरूम की डाल की जड़ की सफाई एवं कटाई उत्‍पादन कक्ष के बाहर की जाए तथा पूरी तरह निस्‍तारित कर दी जाए।
9.
10.        कटाई करते समय मशरूम की डाल के टूटे हुए टुकड़े फर्श पर पड़े नहीं रहने चाहिए। यदि डाल टूटती है तो इसे पूरी तरह क्‍यारी से हटा दिया जाए।
10.
11.        मशरूम उगाने के लिए साफ भूसी आवश्‍यक है। ब्‍लॉक तैयार करते समय इस बात की सावधानी रखी जाए कि यह पूरी तरह से संपीडित हो। जितना ज्‍यादा संपीडन होग, स्‍पान रनिंग उतनी अधिक होगी।

12.        विकास के किसी भी स्‍तर पर अत्‍यधिक नमी नुकसानदेह होती है। पर्यावरण नम होना चाहिए किंतु गीला नहीं होना चाहिए। इसके लिए एक बारीक नोज़ल का स्‍प्रेयर उत्तम होगा ताकि बड़ी बड़ी बूंदे न गिर सकें। अधिक नमी से अवांछित संदूषक उत्‍पन्‍न होंगे जो बाधक होंगे तथा कई मामलों में मशरूम के स्‍पॉन के लिए गंभीर प्रतिद्वंदी साबित होंगे।
13.        कक्ष के तापमान को बढाते समय, यदि आवश्‍यक हो, इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि तापमान में अचानक वृद्धि न हो। तापमान को तब तक धीरे-धीरे बढ़ाया जाए जब तक यह अपेक्षित स्‍तर तक न पहुंच जाए।

14.        जब स्‍पॉन रनिंग के लिए ब्‍लाकों का स्‍थापन करते समय एक दूसरे के ऊपर उन्‍हें न रखें अन्‍यथा अधिक ऊष्‍मा उत्‍पन्‍न होगी। ब्‍लॉकों को एकल सतह में साथ साथ रखें।

15.        स्‍पॉन द्वारा स्‍ट्रा को पूरी तरह भर लेने के उपरान्‍त ब्‍लाक को 24 घंटे से अधिक के लिए प्‍लास्टिक में बिना खोले न रखा जाए।
15.
16.        कक्ष में वायु के साथ ताजी हवा का आदान प्रदान किया जाए। पवन धाराएं मशरूम को सुखा सकती है तथा विकृत मशरूम का निर्माण कर सकती हैं।

टमाटर की वैज्ञानिक खेती :


अपने इन्ही पोषक गुणों एवं विविध उपयोगों के कारण टमाटर सबसे महत्वपूर्ण सब्जी वाली फ़सल है।
जलवायु और मिट्टी
टमाटर गर्मी के मौसम की फ़सल है और पाला नहीं सहन कर सकती है। 12 डिग्री से०ग्रे० से 26 डिग्री से०ग्रे० के तापमान के बीच इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। रात का आदर्श तापमान 25 डिग्री से०ग्रे० से 20 डिग्री से०ग्रे० है। टमाटर की फ़सल पोषक तत्वों से युक्त दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी होती है। लेकिन इसकी अगेती क़िस्मों के लिए बलुई तथा दोमट बलुई मिट्टी अधिक उपयुक्त है। इसके अलावा यदि जल निकास की व्यवस्था अच्छी हो तो इसे मटियार तथा तलहटी दोमट में भी उगाया जा सकता है।


टमाटर की क़िस्में
 विभिन्न प्रान्तों में स्थान विशेष के अनुरूप विभिन्न क़िस्मों को उगाने की सिफारिश की गई है।
  1. पूसा रूबी यह अगेती किस्म है, जिसके फल रोपाई के 60-65 दिनों बाद पक जाते है। फल हल्की धारियों वाले चपटे और समान रूप से लाल होते हैं। यह भारी पैदावार देने वाली किस्म हैं।
  2. पूसा-120  सुत्रकृमि से होने वाली बीमारियों को सह सकने वाली यह किस्म अधिक पैदावार देने वाली है। जिसके फल मझौले आकार के आकर्षक और समान रूप से लाल होते है।
  3. पूसा शीतल इस किस्म में मध्यम आकार के चपटे, गोल फल होते हैं। अगेती बसंत ऋतु की फ़सल के लिए उपयुक्त है। 8 डिग्री सें तक तापमान पर इसके फल लग सकते हैं।
  4. पूसा गौरव इसके फल अडांकार, चिकने, परत मोटी और लाल होते हैं। यह लम्बी दूरी तक ले जाने की दृष्टि से उपयुक्त है। अधिक उपज देने वाली क़िस्म खरीफ और बसंत दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है।
  5. पूसा सदाबहार इसके मध्यम आकार के अंडाकार गोल फल होते हैं। यह उत्तरी भारत के मैदानों में, जुलाई-सितम्बर के अलावा पूरे साल उगाने के लिए उपयुक्त है। 6 डि.ग्री. से०ग्रे० से 30 डिग्री से०ग्रे० तक रात के तापमान पर भी इसके फल लग सकते हैं.
  6. पूसा उपहार इसके मध्यम आकार के गोल फल होते हैं। फल गुच्छे में लगते हैं। यह भारी पैदावार देने वाली , तथा अधिक बढ़वार वाली किस्म है।
  7. पूसा संकर -1 यह अधिक फलदायक किस्म है। फल मध्यम आकार के चिकने, आकर्षक व गोल होते हैं। यह संकर किस्म जून-जुलाई के अधिक तापमान में भी फल दे सकती है।
  8. पूसा संकर -2 यह भी अधिक उपज देने वाली संकर किस्म है। फल गोल, चिकने तथा चमकदार होते है। यह सूत्रकृमि प्रतिरोधी तथा मोटी परत वाली समान-रूप से पकने वाली किस्म है।
  9. पूसा संकर -4 यह अधिक उपज देने वाली संकर किस्म है। यह किस्म दूर तक ले जाने के लिए उत्तम है। इसके फल गोल आकार के चिकने एवं आकर्षक होते हैं।
बीज की मात्रा और बुआई
बीज दर
एक हेक्टेअर क्षेत्र में फ़सल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु लगभग 350 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
बुआई का तरीक
बीज उठी हुई 65 सें०मी० चौड़ी क्यारियों में उगाया जाता है। खरीफ के मौसम में क्यारियों की चौढाई कम करके 60 सें०मी० की जा सकती है। जब पौध 15 सें०मी० ऊंची हो जाए तो वह रोपे जाने के लिए उपयुक्त हो जाती है। संकर क़िस्मों मे बीज की मात्रा 200 ग्राम प्रति हेक्टेअर पर्याप्त रहती है।
बुआई का समय
उत्तरी भारत के मैदानों में टमाटर फ़सल एक साल में दो बार ली जा सकती है। पहली फ़सल के लिए बीज क्यारियों में जुलाई-अगस्त में बोया जाता है। पौध रोपाई का कार्य अगस्त के अंत तक किया जा सकता है दूसरी फ़सल नवम्बर -दिसम्बर के महीने में बोई जा सकती है जिसकी पौध रोपाई का कार्य जब पाले का खतरा टल जाए तो जनवरी-फरवरी में किया जाना चाहिए।
अक्टूबर के आरंभ में भी यह फ़सल बोई जा सकती है, जिसकी पौध नवम्बर में रोपी जाती है। फ़सल पाले रहित क्षेत्रों में उगायी जानी चाहिए या इसकी पाले से समुचित रक्षा करनी चाहिए। रोपाई 60 सें०मी० चौड़ी मेडों पर हमेशा शाम के समय करनी चाहिए और इसके बाद सिंचाई भी कर देनी चाहिए। पंक्ति ओर पौध से पौध की दूरी 60 सें०मी० रखी जाती है।
उर्वकों का प्रयोग
खेत तैयार करते समय 25 से 30 मीट्रिक टन अच्छी सड़ी  गोबर की खाद प्रति हेक्टेअर की दर से डालें। इसके अलावा 400 कि०ग्रा० सुपर फ़ॉस्फ़ेट तथा 60 से 100 कि०ग्रा० पोटेशियम सल्फ़ेट डाला जाना चाहिए। 300-400 कि०ग्रा० अमेनियम सल्फ़ेट या सी.ए. एन. को दो बराबर मात्रा में फ़सल में डालें। पहली, रोपाई के एक पखवाडे बाद और दूसरी, उसके 20 दिन बाद।
सिंचाई
पहली सिंचाई रोपाई के तुरन्त बाद करनी चाहिए। इसके बाद सर्दियों के मौसम में फ़सल को हर दसवे या ग्यारहवे दिन, बसंत के मौसम में छठे या सातवें दिन सींचना चाहिए।
खरपतवारों की रोकथाम
जब जरूरत समझें, फ़सल की निराई-गुड़ाई करें। टमाटर के खेत को खरपतवारों सें रहित रखना , टमाटर की फ़सल की सफलता की पहली कुन्जी है। खपतवारों की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेअर 1.5 लीटर की दर से बासालीन का छिड़काव करें।
फ़सल सुरक्षा
टमाटर की फ़सल को मुख्यतः सरसों सॉ फलाई तथा माहू से नुकसान पहुँचाता है।
कीटः जैसिड, सफेद मक्खी और फल छेदक प्रमुख कीट हैं।
टमाटर फल छेदक :यह टमाटर का सबसे प्रमुख शत्रु है। टमाटर की फ़सल में इसकी पहचान फलों में मौजूद छेदों से होती है। इस कीड़ों की इल्लियाँ हरे फलों में घुस जाती है,। और इन कीडों के प्रभाव से फल सड़ जाते हैं।
जैसिड : ये हरें रंग के छोटे कीड़े होते हैं जो पौधों की कोशिका से रस चूस लेते हैं। जिसके कारण पौधों की पत्तियाँ सूख जाती हैं।
सफेद मक्खी: ये सफेद छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जो पौधों से उनका रस चूस लेते हैं और इनसे पत्तियाँ मुड़ जाने वाली बीमारी फैलती है। इस कीड़े से प्रभावित पत्तियाँ मुरझाकर धीरे-धीरे सूख जाती हैं।
रोकथाम का उपाय
फल की बढ़वार की आरम्भिक अवस्था में मक्खी और जैसिड की रोकथाम के लिए 0.05 मेटासिस्टोकस उथवा डाइमैथेएट का छिड़काव करना चाहिए। फल छेदक से प्रभवित फलों और इस कीड़े के अंडों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। यदि इस कीड़े का आक्रमण गंभीर रूप से हुआ हो तो फ़सल पर 0.05 मैलाथियान अथवा 0.1 कार्बोरिल का छिड़काव करें। एक पखवाडे के अंतराल पर यह छिड़काव दुबारा करना चाहिए।
बीमारियाँ
विगलन -यह रोग फ़सल को क्यारियों में सबसे ज्यादा हानि पहुँचाता हैं खासतौर से बरसात के मौसम में इसका आग्रमण बहुत गंभीर होता है। यह रोग पौधों में ज़मीन की सतह से लगाना शुरू होता है जिसके कारण पौधे गिर जाते हैं।
रोकथाम का उपाय
  1. प्रति किलोग्राम बीज को 2  ग्राम थइरम, कैप्टान या बाविस्टीन से उपचारित करना चाहिए।
  2. पौध तैयार करने के लिए उठी हुई और उपयुक्त जल निकास वाली क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए।
  3. क्यारियों की मिट्टी में २ ग्राम थाइरम, कैप्टान या किसी अन्य फफूंदीनाशक को एक लीटर पानी मे घोलकर हर छिड़काव हमेशा शाम के समय किया जाए।
  4. रोपाई करने से पहले प्रभावित पौधों को हटा दें।
पत्तियों का मुड़ जाना , मरोडिया रोग इस बीमारी का लक्षण यह है कि कि पत्तियाँ मुड़ जाती है, उनका आकार छोटा हो जाता है तथा उनकी सतह खुरदरी हो जाती है। इसके अलावा कई ,शाखांए भी निकल आती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है। बरसात के मौसम वाली फ़सल में बीमारी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। यह विषाणुओं से होने वाली एक बीमारी है जो सफेद मक्खी द्धारा फैलती है।
फ़सल को पौध अवस्था में मक्खियों से बचाने के लिए क्यारियों पर घर मे इस्तेमाल की जाने वाली कपडे की मसहरी लगा देनी चाहिए। रोपाई से पहले सभी प्रभावित पौधों को क्यारियों से निकाल देना चाहिए।
जड़ की गाठों वाल सूत्रकृमि
लक्षण प्रभावित पौधों की जड़ों में बडी-बडी गाठें हो जाती है। पौधों की पत्तियाँ पाली दिखाई पड़ने लगती हैं और प्रभावित पौधों की बढ़वार रुक जाती है।
रोकथाम का उपाय मोटे अनाजों वाला फ़सल चक्र अपनाना चाहिए। गर्मी के मौसम के दौरान खेत को परती छोड कर 2-3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को लगभग 15 मिनट तक 500 प्रति दसलक्षांश वाले थियोनैसिन में डुबाना चाहिए। सूत्रकृमि निरोधक पूसा-130 क़िस्म बोनी चाहिए।

फ़सल को पौध अवस्था में मक्खियों से बचाने के लिए क्यारियों पर घर मे इस्तेमाल की जाने वाली कपड़े की मसहरी लगा देनी चाहिए। रोपाई से पहले सभी प्रभावित पौधों को क्यारियों से निकाल देना चाहिए।
उपज
यदि टमाटर को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना हो तो इन्हें तब तोड़ना चाहिए जब वे कच्चे हों तथा पीले रंग के और टिक सकने की अवस्था में हों। स्थानीय डिब्बा बंदी के लिए अच्छी तरह पके हुए और लाल फल तोड़े जाने चाहिएँ। क़िस्म के अनुसार टमाटर की फ़सल 75 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है। जुलाई-अगस्त में रोपी गई फ़सल नवम्बर-दिसम्बर में तैयार हो जाती है।

आ गया अधिक प्रोटीन वाला आलू....


भारतीय वैज्ञानिकों ने आलू की ऐसी जीन संवर्धित प्रजाति को विकसित करने में कामयाबी हासिल की है, जिसमें साठ प्रतिशत अधिक प्रोटीन होगा। खास बात यह भी है कि इस प्रजाति में सेहत के लिए फायदेमंद समझे जानेवाले अमीनो एसिड, लाइसिन, टायरोसिन व सल्‍फर भी अधिक मात्रा में हैं, जो आम तौर पर आलू में बहुत सीमित होते हैं।

इस खोज को अंजाम देनेवाले नेशनल इंस्‍टीट्यूट फॉर प्‍लांट जीनोम रिसर्च की शोध टीम की प्रमुख शुभ्रा चक्रवर्ती का कहना है कि विकासशील और विकसित देशों में आलू मुख्य भोजन में शुमार है और इस खोज से काफी अधिक संख्या में लोगों को फायदा होगा। इससे आलू से बने पकवानों को स्वाद और सेहत दोनों के लिए फायदेमंद बनाया जा सकेगा। इसके अलावा वह इस खोज को जैव इंजीनियरिंग के लिए भी फायदेमंद मानती हैं। उनका कहना है कि इससे अगली पीढ़ी की उन्नत प्रजातियों को खोजने के लिए वैज्ञानिक प्रेरित होंगे।

विज्ञान पत्रिका "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ सांइस" में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आलू की अन्य किस्मों के बेहतरीन गुणों से भरपूर इस किस्‍म को लोग हाथों-हाथ लेंगे। रिपोर्ट के अनुसार इस प्रजाति में संवर्धित गुणसूत्रों वाली आलू की सबसे प्रचलित प्रजाति अमरनाथ के गुणसूत्रों को भी मिलाया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार दो साल तक चले इस शोध में आलू की सात किस्मों में संवर्धित गुणसूत्र वाले जीन "अमरंथ एल्बुमिन 1 (AmA1)" को मिलाने के बाद नयी प्रजाति को तैयार किया गया है। प्रयोग में पाया गया कि इस जीन के मिश्रण से सातों किस्मों में प्रोटीन की मात्रा 35 से 60 प्रतिशत तक बढ़ गयी। इसके अलावा इसकी पैदावार भी अन्य किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेएर 15 से 20 प्रतिशत तक ज्यादा है।

इसके उपयोग से होनेवाले नुकसान के परीक्षण में भी यह प्रजाति पास हो गयी। चूहों और खरगोशों पर किए गए परीक्षण में पाया गया कि इसके खाने से एलर्जी या किसी अन्य तरह का जहरीला असर नहीं हुआ है। रिपोर्ट में इस किस्म को हर लिहाज से फायदेमंद बताते हुए व्यापक पैमाने पर इसे पसंद किए जाने का विश्वास व्यक्त किया गया है। हालांकि अभी इसे उपयोग के लिए बाजार में उतारे जाने से पहले पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से हरी झंडी मिलना बाकी है।भारतीय वैज्ञानिकों ने आलू की ऐसी जीन संवर्धित प्रजाति को विकसित करने में कामयाबी हासिल की है, जिसमें साठ प्रतिशत अधिक प्रोटीन होगा। खास बात यह भी है कि इस प्रजाति में सेहत के लिए फायदेमंद समझे जानेवाले अमीनो एसिड, लाइसिन, टायरोसिन व सल्‍फर भी अधिक मात्रा में हैं, जो आम तौर पर आलू में बहुत सीमित होते हैं।

इस खोज को अंजाम देनेवाले नेशनल इंस्‍टीट्यूट फॉर प्‍लांट जीनोम रिसर्च की शोध टीम की प्रमुख शुभ्रा चक्रवर्ती का कहना है कि विकासशील और विकसित देशों में आलू मुख्य भोजन में शुमार है और इस खोज से काफी अधिक संख्या में लोगों को फायदा होगा। इससे आलू से बने पकवानों को स्वाद और सेहत दोनों के लिए फायदेमंद बनाया जा सकेगा। इसके अलावा वह इस खोज को जैव इंजीनियरिंग के लिए भी फायदेमंद मानती हैं। उनका कहना है कि इससे अगली पीढ़ी की उन्नत प्रजातियों को खोजने के लिए वैज्ञानिक प्रेरित होंगे।

विज्ञान पत्रिका "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ सांइस" में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आलू की अन्य किस्मों के बेहतरीन गुणों से भरपूर इस किस्‍म को लोग हाथों-हाथ लेंगे। रिपोर्ट के अनुसार इस प्रजाति में संवर्धित गुणसूत्रों वाली आलू की सबसे प्रचलित प्रजाति अमरनाथ के गुणसूत्रों को भी मिलाया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार दो साल तक चले इस शोध में आलू की सात किस्मों में संवर्धित गुणसूत्र वाले जीन "अमरंथ एल्बुमिन 1 (AmA1)" को मिलाने के बाद नयी प्रजाति को तैयार किया गया है। प्रयोग में पाया गया कि इस जीन के मिश्रण से सातों किस्मों में प्रोटीन की मात्रा 35 से 60 प्रतिशत तक बढ़ गयी। इसके अलावा इसकी पैदावार भी अन्य किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेएर 15 से 20 प्रतिशत तक ज्यादा है।

इसके उपयोग से होनेवाले नुकसान के परीक्षण में भी यह प्रजाति पास हो गयी। चूहों और खरगोशों पर किए गए परीक्षण में पाया गया कि इसके खाने से एलर्जी या किसी अन्य तरह का जहरीला असर नहीं हुआ है। रिपोर्ट में इस किस्म को हर लिहाज से फायदेमंद बताते हुए व्यापक पैमाने पर इसे पसंद किए जाने का विश्वास व्यक्त किया गया है। हालांकि अभी इसे उपयोग के लिए बाजार में उतारे जाने से पहले पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से हरी झंडी मिलना बाकी है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने आलू की ऐसी जीन संवर्धित प्रजाति को विकसित करने में कामयाबी हासिल की है, जिसमें साठ प्रतिशत अधिक प्रोटीन होगा। खास बात यह भी है कि इस प्रजाति में सेहत के लिए फायदेमंद समझे जानेवाले अमीनो एसिड, लाइसिन, टायरोसिन व सल्‍फर भी अधिक मात्रा में हैं, जो आम तौर पर आलू में बहुत सीमित होते हैं।

इस खोज को अंजाम देनेवाले नेशनल इंस्‍टीट्यूट फॉर प्‍लांट जीनोम रिसर्च की शोध टीम की प्रमुख शुभ्रा चक्रवर्ती का कहना है कि विकासशील और विकसित देशों में आलू मुख्य भोजन में शुमार है और इस खोज से काफी अधिक संख्या में लोगों को फायदा होगा। इससे आलू से बने पकवानों को स्वाद और सेहत दोनों के लिए फायदेमंद बनाया जा सकेगा। इसके अलावा वह इस खोज को जैव इंजीनियरिंग के लिए भी फायदेमंद मानती हैं। उनका कहना है कि इससे अगली पीढ़ी की उन्नत प्रजातियों को खोजने के लिए वैज्ञानिक प्रेरित होंगे।

विज्ञान पत्रिका "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ सांइस" में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आलू की अन्य किस्मों के बेहतरीन गुणों से भरपूर इस किस्‍म को लोग हाथों-हाथ लेंगे। रिपोर्ट के अनुसार इस प्रजाति में संवर्धित गुणसूत्रों वाली आलू की सबसे प्रचलित प्रजाति अमरनाथ के गुणसूत्रों को भी मिलाया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार दो साल तक चले इस शोध में आलू की सात किस्मों में संवर्धित गुणसूत्र वाले जीन "अमरंथ एल्बुमिन 1 (AmA1)" को मिलाने के बाद नयी प्रजाति को तैयार किया गया है। प्रयोग में पाया गया कि इस जीन के मिश्रण से सातों किस्मों में प्रोटीन की मात्रा 35 से 60 प्रतिशत तक बढ़ गयी। इसके अलावा इसकी पैदावार भी अन्य किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेएर 15 से 20 प्रतिशत तक ज्यादा है।

इसके उपयोग से होनेवाले नुकसान के परीक्षण में भी यह प्रजाति पास हो गयी। चूहों और खरगोशों पर किए गए परीक्षण में पाया गया कि इसके खाने से एलर्जी या किसी अन्य तरह का जहरीला असर नहीं हुआ है। रिपोर्ट में इस किस्म को हर लिहाज से फायदेमंद बताते हुए व्यापक पैमाने पर इसे पसंद किए जाने का विश्वास व्यक्त किया गया है। हालांकि अभी इसे उपयोग के लिए बाजार में उतारे जाने से पहले पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से हरी झंडी मिलना बाकी है।

आइये जाने पोषक तत्वों की कमी को ....

राज्य की मृदाओं मे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अनेक क्षेत्रो मे फसलोउत्पादन को प्रभावित कर रही है इसका मुख्य कारण अधिक उपज देने वाली प्रजातिओं की सघन खेती ,जैव खादों का निम्न अथवा अनुप्रयोग एंव अधिकतर  किसानो द्वारा अभिक विष्लेषणमान  वाले नत्रजन ,फास्फोरस और पोटाश उर्वको का प्रयोग वर्त्तमान मे भारत वर्ष की मृदाओं मे सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी का प्रतिशत इस प्रकार है जस्ता ४९ %बोरान ३३ %लोहा १२%मगनीज  ४% एंव ताबा ३%,फसलोत्पादन के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की निश्चित जानकारी मृदा परीक्षण एंव पादप उतक विष्लेषण से हो सकती  है भूमी मे सूक्ष्म पोषक उर्वको का प्रयोग कमी की दशा मे हर तीसरे साल किया जा सकता है सूक्ष्म पोषक तत्वों के घोलो का छिडकाव खुले मौसम मे सुबह करना चाहिए तेज हवा ,बरसात या अत्यधिक कड़ी धुप मे छिडकाव लाभप्रद  नहीं होता है