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सोमवार, 7 नवंबर 2011

FARM INNOVATION

 कुछ ऐसे किसान जो  अपनी लगन और प्रगतिशील सोच से कृषक समाजमें मिशाल बने
टमाटर और सूरजमुखी का अंतर फसल -
श्री महेन्द्रू साहू
Village- Amagawa, Post- Peri, P.S- Simariya,
District- Chatra, State- Jharkhand

जैसा हम जानते है, टमाटर में ज्यादा फल लगने से उसकी शाखाए उसे सहारा नहीं दे पाती है और इससे यह शाखाए टूटने लग जाती है. अगर बाहर से कोई सहारा नहीं दिया जाये तो लगभग ४०% फसल इसी तरह खराब हो जाता है. आम तौर पे लकरी या बांस के टुकरो का इस्तेमाल सहारा देने के लिए किया जाता है. झारखण्ड के श्री महेन्द्रू साहू ने एक अभिनव तरीका निकला है जिसमे वोह सूरजमुखी के पौधो को सहारा देने के लिए इस्तेमाल करते है. इस प्रक्रिया में सूरजमुखी का बीज, टमाटर स्थानांतरित होने के 20 दिन बाद जमीन में रोपा जाता है. टमाटर लगभग 55-60 दिनों में फल देना सुरु करता है और उस समय तक सूरज मुखी का पौधा उसे सहारा देने ले लायक हो जाता है. इस तरह से फसल लगाने से टमाटर के साथ साथ सूरजमुखी से भी उपरी आमदनी हो जाता है.

कीटरोधी चिपचिपा घड़ा
श्री लक्ष्मीधर मोहन्ता 
Village- Basudevpur, Block- Sadar
District - Keonjhar, State- Orissa.
 
श्री मोहन्ता काफी छोटे किसान है और अपनी खेतिहर जमीन  पर पिछले 30 सालो से धान , और सब्जियों की खेती करते हैं. इनका आविष्कार काफी उपयोगी और सर्वसुलभ है इन्होने एक चिपचिपे घड़े की खोज की है जो स्थानीय रूप से आसानी से बनाया जा सकता है इसके लिए इन्होने एक घड़ा लिया और उसके बाहरी सतह को पीले चमकीले रंग से रंग दिया इसके बाद घड़े की बाहरी सतह पर  महुआ का तेल (Madhuca Indica) लगा दिया जो काफी चिपचिपा होता है. प्रति हेक्टेयर ऐसे ही 20 घड़ो की आवश्यकता पड़ती है जिसे लकड़ी की चड्डी की सहायता से खेत में लगा दिया जाता है. फलस्वरूप कीड़े इस घड़े की और आकर्षित होते है और महुए के तेल की वजह से उसमे चिपक जाते है. यह विधि काफी सस्ती और टिकाऊ है जिसकी मदद से कई वाइरस जनित रोगों जिनका प्रसार  कीड़े-मकोड़ों के जरिये होता है जैसे  little leaf in brinjal, leaf curl in tomato, YVMV in okra and mosaic in cucurbits पर नियंत्रण पाया जा सकता है. दूसरे हाथ  ये बाजार में उपलब्ध ऐसे ही महंगी traps का सस्ता विकल्प भी है 
 रिले क्रोपिंग 
श्री रुशिकेश गिरी.
  District- Bhadrak , State - orissa
एक तरफ सब्जियो के बढ़ते  दाम से हम सब परेशान है, और दूसरी  तरफ किसान की आमदनी बढ़ नहीं रही है. ऐसे परिस्थिति में यह आविष्कार काफी महत्व रखता है.
अंतर फसल का उत्पादन किसानो के लिए हमेशा लाभदायक रहा है. लेकिन सब्जी उत्पादन में इस तकनीक का कुछ खास योगदान अविष्कार करने में सफल हुए भद्रक, ओरिसा के श्री रुशिकेश गिरी. अक्टूबर से लेकर मई महीने के बिच उन्होंने लगातार एक के बाद एक कम अवधी के फसलों कुछ ऐसे लगाया - एक फसल एक जब फल देना शुरू करता है तो दूसरे फसल को रोप दिया गया. इससे जबतक पहला फसल का जीवनकाल खतम हो रहा है, तबतक दूसरा फसल फल देने लगता है. इसे “रिले” तरीका कहा जा सकता है औ इस तरीके में 3 से 7 फसलों को मात्र 8 महीने के अवधी में लगाया जा सकता है.
खेती के इस तरीके से किसान को ज्यादा आमदनी होती है. छोटे किसान इससे अपनी छोटी सी जमीन का बेहतर इस्तेमाल कर सकते है. इतना ही नहीं इससे जमीन, पानी, खाद, कितनासक सभी का बेहतर इस्तेमाल होता है. कई बार एक फसल दूसरे फसलों के बचाव के काम में भी आ जाता है. जैसे की अदरख  दुसरे फसलों को  कई बीमारियो से बचाता है.
 

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