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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

सफलता की कहानी - कृशक की जुबानी


जिला - बक्सर
सफलता की कहानी - कृशक की जुबानी

पहले ढ़ैंचा, फिर रोपे धान।
वही है आज का सफल किसान।।
                बिहार सरकार कृशि विभाग के इस उक्ति को आत्मसात कर दिखाया है, बक्सर जिला अन्तर्गत राजपुर प्रखंड के अकबरपुर पंचायत अन्तर्गत बसही ग्राम के किसान श्री विरेन्द्र कुमार सिंह ने / स्व0 लाल बहादुर सिंह जी के तीन पुत्रों में ज्येश्ठ श्री विरेन्द्र सिंह जी ने हाई स्कूल पास करने के पष्चात ही खेती में विषेश रूची लेने लगे और स्वयम् को खेती के लिये ही समर्पित कर दिया। कृशि विभाग द्वारा संचालित लगभग सभी कार्यक्रमों में रूचि रखते हैं तथा प्रत्यक्षण आदि कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। आज इनके सम्पूर्ण परिवार के पोशण का मुख्य साधन कृशि ही है। यह एक सफल किसान है। क्या है इनकी सफलता का राज आइये इन्हीं से पुछते हैं -

                वैसे तो मैं बचपन से ही खेती में रूचि रखता हूंॅ। किन्तु विगत वर्श हमारे गांॅव में किसान पाठषाला का आयोजन कृशि विभाग द्वारा किया गया। जिसमें प्रषिक्षक थे श्री मृत्यूंजय जी। संयोगवष आज वही हमारे पंचायत के विशय वस्तु विषेशज्ञ भी हैं। उन्हौने ही खेती के वैज्ञानिक पहलुओं से प्रथमवार हम किसानों को रूबरू कराया। क्या आने वाली पीढ़ी को प्रदुशण मुक्त और षुद्ध वातावरण मिल सके इसके लिये टिकाऊ खेती महत्व को समझाया। साथ ही मिट्टी की उर्वरता कायम रहे इसके लिये हरी खाद एवं जैविक उत्पाद के खेती में अधिकाधिक प्रयोग के लिये प्रेरित किया। वैज्ञानिक खेती एवं पारंपरिक खेती के अन्तर को सटीक तरीके से समझाया। आधुनिक खेती में ढ़ैंचा का महत्व उसी की एक कड़ी है।


                उन्हीं से प्रेरित होकर एक दिन में फोन किया कि सर ढै़ंचा का बीज कहांॅ मिलेगा। उन्हौने अति उत्साहित लहजे में कहा कि इस वर्श कृशि विभाग निःषुल्क ढ़ैंचा बीज मुहैया करा रही है आप प्रखंड मुख्यालय, राजपुर आकर बीज ले जाइये। मृत्यंजय जी के निर्देषन में मैने लगभग 10 (दस) एकड़ क्षेत्र में ढ़ैंचा का बीज लगाया। जिस प्लाॅट में मैने ढ़ैंचा का प्रयोग किया था उसमें उत्पादन काफी अच्छा रहा है।


                ढ़ैंचा के प्रयोग में जो मुझे स्पश्ट महत्व समझ आया, वह यह यह है कि जिस खेत में ढ़ैंचा या जैविक उत्पाद का प्रयोग कर खेती किया हूंॅ, उस पौधे पर रोग एवं व्याधियों का प्रभाव भी कम रहा तथा मृदा की जलधारण क्षमता में भी कमी आयी। इस बार उर्वरक के रूप में रासायनिक खादों का प्रयोग पहले की तुलना में आधा किया हूंॅ। हांॅ कृशि विभाग के बही सहयोग से वर्मी कम्पोस्ट यूनिट लगाया हूंॅ जिसका प्रयोग इस वर्श खेती में किया हूंॅ।

                अतः हरी खाद के रूप में ढ़ैंचा का प्रयोग हम किसानों के लिये रामबाण है। इसके प्रयोग से सिंचाई जल, रासायनिक उर्वरक, रासायनिक दवाओं पर खर्च से मुक्ति मिल जाती है तथा उत्पादन पहले जहांॅ 40-45 क्विींटल प्रति हेक्टेयर होता था आज धान का उत्पादन 85-95 क्ंिवींटल हो रहा है। अगले वर्श से सभी खेत में ढ़ैंचा का बीज लगाने का मन बना लिया हूंॅ। वाकई ढ़ैंचा हम किसानों के लिए वरदान है। अब मैं भी फक्र से कहता हूंॅ - ‘‘जो पहले बोये ढ़ैंचा फिर लगाये धान वही है सफल किसान।’’


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